बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

उच्चारण: “…..आई होली रे !” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

उच्चारण: “…..आई होली रे !” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आँचल में प्यार लेकर,
भीनी फुहार लेकर.
आई होली, आई होली,
आई होली रे!

चटक रही सेंमल की फलियाँ,
चलती मस्त बयारें।
मटक रही हैं मन की गलियाँ,
बजते ढोल नगारे।

निर्मल रसधार लेकर,
फूलों के हार लेकर,
आई होली, आई होली,
आई होली रे!

मीठे सुर में बोल रही है,
बागों में कोयलिया।
कानों में रस घोल रही है,
कान्हा की बाँसुरिया।

रंगों की धार लेकर,
सुन्दर शृंगार लेकर,
आई होली, आई होली,
आई होली रे!

लहराती खेतों में फसलें,
तन-मन है लहराया.
वासन्ती परिधान पहनकर,
खिलता फागुन आया,

महकी मनुहार लेकर,
गुझिया उपहार लेकर,
आई होली, आई होली,
आई होली रे!

विशिष्ट पोस्ट

विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा ...