शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

महाकवि कालिदास की समाधि श्रीलंका में है.

महाकवि कालिदास। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के राजकवि।
अभिज्ञान शकुंतलम, मेघदूत, मालविकाग्निमित्र, ज्ञतुसंहार, कुमारसंभव आदि महान ग्रन्थों के रचयिता। इतना प्रसिद्ध व्यक्ति पर जिसका जन्मकाल, जन्मभूमि के साथ-साथ मृत्युकाल सब विवादित। पर जो भी जानकारी उपलब्ध होती है, उसके अनुसार उनकी जीवन यात्रा श्रीलंका में जा कर समाप्त हुई थी।

लंका में प्राप्त जानकारी के अनुसार, कालिदास वहां के राजकुमार कुमारदास द्वारा रचित "जानकी हर राम" नामक काव्य को पढ इतने अभिभूत हो गये कि पता लगा कर उसके प्रतिभाशाली रचनाकार से मिलने लंका पहुंच गये। वहां उनका भव्य स्वागत किया गया। कुमारदास पहले से ही कालिदास का भक्त था। दोनों जल्दि ही एक दूसरे के अभिन्न मित्र बन गये। फिर कुमारदास के अतिशय अनुरोध पर कालिदास ने वहीं स्थायी रूप से रह कर अपनी काव्य साधना करने का आग्रह स्वीकार कर लिया।

समय बीतता गया, राजा के निधन के पश्चात कुमारदास राजा बना और यहीं से उसका पतन शुरु हो गया। उसका अधिकांश समय विभिन्न वेश्यालयों में बीतने लगा। इन सब समाचारों का पता कालिदास को भी लगता रहता था। अंत में उन्होंने भी इस सब की पुष्टि के लिये वेश्यालयों में जा कर सच्चाई का पता लगाना शुरु कर दिया। कुमारदास को भी खबर मिली कि कोई रोज उसके बारे में पता करने के लिये वेश्यालयों का चक्कर लगा रहा है। उसे लगा कि कहीं यह मेरा मित्र कालिदास ही तो नहीं। इस सच्चाई को जानने के लिये उसने एक दिन एक वेश्यालय से निकलते वक्त उसके द्वार पर एक अधुरा श्लोक लिख दिया, साथ ही यह सूचना भी लगा दी कि इस श्लोक को पूरा करने वाले को मुंहमाँगी स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। कुछ देर बाद वहां कालिदास आए और सूचना पढ श्लोक पूरा कर दिया। यह सारा मंजर वहां की वेश्या देख रही थी। उसके मन में पाप आ गया। उसने पुरस्कार की राशि प्राप्त करने के लिये कालिदास की हत्या कर उनकी लाश को अपने घर में गड़वा दिया और श्लोक को अपना
बता इनाम लेने राजदरबार जा पहुंची। पर वह मूढ संस्कृत भाषा से पूर्णतया अंजान थी। उसके अशुद्ध उच्चारण से भेद तुरंत खुल गया। कुमारदास ने सच्चाई उगलवा ली।अपने प्रिय मित्र का ऐसा हश्र देख उसका कलेजा मुंह को आ गया। उसने पूरे विधि विधान से अपने मित्र के पार्थिव शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया। पर इस सारी घटना के लिये वह अपने को माफ नहीं कर पा रहा था। जैसे ही चिता धू-धू कर जलने लगी कुमारदास अपने को रोक नहीं पाया और उसी चिता में कूद अपनी जान दे दी। उसे ऐसा करते देख उसकी पाचों रानियों ने भी उसी चिता में कूद अपने प्राण त्याग दिये।

यह समाधि श्रीलंका की नील बालका नदी के किनारे मातर नामक स्थान पर अवस्थित है। इसे सप्त बोधि के
नाम से जाना जाता है। अप्रैल के तीसरे सप्ताह में यहां हर साल महाकवि कालिदास का पुण्य पर्व मनाया जाता है।

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जानकारी देने के लिए धन्यवाद!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

behad maarmik.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

शर्मा जी-
आपने बहुत ही अच्छी जानकारी।
आभार

Manish Kumar ने कहा…

वाह! ये तो पता नहीं था...

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

कालिदास की समाधि श्रीलंका मे है, ये तो पता ही नही था.

Udan Tashtari ने कहा…

नई जानकारी मिली.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी....बिल्कुल नवीन्!!!

Satish Saxena ने कहा…

नयी जानकारी है मेरे लिए ! शुक्रिया !

Himanshu Pandey ने कहा…

बिलकुल नयी जानकारी । आभार ।

manish.malanihyd@gmail.com ने कहा…

9490311097

Niks ने कहा…

कई लोग इनकी समाधी को उत्तराखंड के कालीमठ में बताते है

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