रविवार, 13 दिसंबर 2009

कथा का "री मंचन" पर अब सुधार के साथ

मूषकराज ने कहा, देवी मुझे क्षमा करें। सच बहुत कटु होता है। आपकी अस्थिर बुद्धि और चंचल मन सुयोग्य पात्रों को भी नहीं पहचान पाए। मैं तो एक तुच्छ जीव हूँ..........................

कहते हैं ना कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, सच मानिये सब कुछ वैसे ही हुआ जैसा वर्षों पहले घटा था बस घटना का अंत जरा बदल गया है। आज कल की नारियों की प्रचंड़ सफलता की आंधी में हमारे इस नायक के फैसले का पता भी नहीं चलना था यदि दंड़कारण्य के बीहड़ जंगलों का दौरा ना किया होता। कहानी पूरानी है पर उसका अंत अप्रत्याशित है।

घूमने का शौक फिर एक बार दंड़कारण्य के जंगलों तक ले आया था। दैवयोग से एक सुबह नदी किनारे एक साधू महाराज के दर्शन हो गये। उनसे कुछ ज्ञान पाने की गरज से मैं उनके साथ हो लिया। उन्होंने मुझसे पिंड़ छुड़ाने की बहुत कोशिश की पर अंत में वे मुझे अपने साथ अपनी कुटिया में ले गये। वहां एक सुलक्षिणी कन्या को देख मैंने, अपनी जिज्ञासा को रोक ना पा, उसका परिचय जानना चाहा। साधू महाराज एक अनजान को कुछ बताने से झिझक रहे थे पर कुछ देर बाद शायद सुपात्र समझ उन्होंने जो बताया वह आश्चर्य जनक था। उन्हीं के शब्दों में पूरी कथा सुनिये............

एक सुबह मैं नदी मे स्नान करने के पश्चात सूर्यदेव को अर्ध्य दे रहा था, तभी आकाशगामी एक चील के चंगुल से छूट कर एक छोटी सी चुहिया मेरी अंजली मे आ गिरी। वह बुरी तरह से घायल थी। मैं उसे अपने आश्रम में ले आया तथा मरहम-पट्टी कर उसे जंगल मे छोड़ देना चाहा पर शायद ड़र के मारे या किसी और कारणवश वह जाने को राजी ही नहीं हुई। मैने भी उसकी हालत देख उसे अपने पास रहने दिया। समय बीतता गया और कब मैं उसे पुत्रीवत स्नेह करने लग गया इसका पता भी नहीं चला और इसी मोहवश एक दिन अपने तपोबल से उसे मानव रूप दे दिया। कन्या जब बड़ी हुई तो उसके विवाह के लिए मैने एक सर्वगुण सम्पन्न मूषक के बारे मे उसकी राय जाननी चाही तो उसने अपनी पसंद दुनिया की सबसे शक्तिशाली शख्सियत को बताया। बहुत समझाने पर भी जब वह ना मानी तो उसे मैने सूर्यदेव के पास भेज दिया, जो मेरी नजर मे सबसे तेजस्वी देवता थे। चुहिया ने उनके पास जा अपनी इच्छा बतायी। इस पर सूर्यदेव ने उसे कहा कि मुझसे ताकतवर तो मेघ है, जो जब चाहे मुझे ढ़क लेता है तुम उनके पास जाओ। यह सुन मुषिका मेघराज के पास गयी और अपनी कामना उन्हें बताई। मेघराज ने मुस्कुरा कर कहा बालिके तुमने गलत सुना है। मुझ से शक्तिशाली तो पवन है जो अपनी मर्जी से मुझे इधर-उधर डोलवाता रहता है। इतना सुनना था कि चुहिया ने पवनदेव को जा पकड़ा। पवनदेव ने उसकी सारी बात सुनी और फिर उदास हो बोले कि वह तो सदियों से पर्वत के आगे नतमस्तक होते आए हैं जो उनकी राह में सदा रोड़े अटकाता रहता है। इतना सुनना था कि चुहिया मुंह बिचका कर वहां से सीधे पहाड़ के पास आई और उनसे अपने विवाह की इच्छा जाहिर की। अब आज के युग मे छोटी-छोटी बातें तेज-तेज चैनलों से पल भर में दुनिया मे फैल जाती हैं तो पर्वतराज को चुहिया की दौड़-धूप की खबर तो पता लगनी ही थी, वह भी तब जब उनके शिखर पर एक विदेशी कंपनी का टावर लगा हुअ था। सैकड़ों वर्षों पहले की तरह उन्होंने फिर उसे वही बताया कि चूहा मेरे से भी ताकतवर है क्योंकि वह अपने मजबूत पंजों से मुझमे भी छिद्र कर देता है। यह कह उन्होंने अपना पीछा छुड़वाया। इतना सुन चुहिया ने वापस मेरे पास आ चूहे से अपने विवाह की स्विकृति दे दी। मैने मूषकराज को खबर भेजी और यहीं इतिहास भी धोखा खा गया। मूषकराज मेरे घर आए और सारी बातें सुन कर कुछ देर चुप रहे फ़िर बोले देवी क्षमा करें। मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता। सच कटू होता है। आपकी अस्थिर बुद्धी तथा चंचल मन, इतने महान और सुयोग्य पात्रों की काबलियत और गुण ना पहचान सके। मैं तो एक अदना सा चूहा हूं। मेरे साथ आपका निर्वाह ना हो सकेगा। इतना कह साधू महाराज उदास हो चुप हो गये। कुछ देर बाद मैने पूछा कि वह आज कल क्या कर रही है। तो ठंड़ी सांस ले मुनि बोले कि लेखिका हो गयी है और पानी पी-पी कर पुरुष वर्ग के विरुद्ध आग उगलती रचनाएं लिखती रहती है।

अब आप सब यह बतायें कि मेरी जंगल यात्रा सफल रही कि नहीं।

8 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

waah !

gazab ki dastaan.........

gazab ka chooha ..gazab ka aalekh !

__badhaai !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

प्रेरक कथा!
आभार!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रचना की अंतिम पंक्तियां किसी पुर्वाग्रह के कारण नहीं लिखी गयी हैं। उन्हें अन्यथा ना लें। यदि किसी को भी नागवार गुजर रहीं हों तो उन्हें तुरंत हटा दिया जायेगा।

बसंती ने कहा…

जब हटाने की बात कर रहे गगन तो लिखा ही क्योम गया था।आपत्ति करने वाले दौड़े आ ही रहे होन्गे।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

आपकी रचना बढिया लगी :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सुन्दर रचना. लेकिन लेखिकायें अब आपका पीछा छोड़ने वाली नहीं.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कृष्ण जी,
सारे की बात नहीं कर रहा हूं। अंतिम पंक्तियों (लेखिका वाली) की ओर ईशारा था।

Preeti tailor ने कहा…

just superb ...

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