रविवार, 26 जुलाई 2009

तीस किलो वजनी "सुदर्शन चक्र" को चलाने के लिये दोनों हाथों की जरुरत पड़ती होगी।

सुदर्शन चक्र श्री कृष्ण जी का एक अभिन्न अंग है। पर इसका निर्माण और संचालन सदा एक गोपनीय विषय रहा है । इसी के बारे में प्रस्तुत है प्रख्यात तांत्रिक तथा विद्वान आचार्य प्रकाशानंद जी  की एक विवेचना :-

हमारे पुराणों में जिन आयुधों का उल्लेख मिलता है उनमें चक्र भी एक है। विभिन्न देवताओं के पास अपने-अपने चक्र हुआ करते थे। जैसे शंकरजी के चक्र का नाम "भवरेंदु", विष्णुजी के चक्र का नाम "कांता चक्र" और देवी का चक्र "मृत्यु मंजरी" के नाम से जाना जाता था।
"सुदर्शन चक्र" का नाम श्रीकृष्णजी के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। अति आवश्यक होने पर ही इसका प्रयोग किया जाता रहा है। यह खुद जितना रहस्यमय है उतना ही इसका निर्माण और संचालन। यह गोपनीयता शायद इसलिये बरती गयी होगी कि इस अमोघ अस्त्र की जानकारी देवताओं को छोड़ दूसरों को ना लग जाये।

मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान शंकरजी ने कर इसे विष्णुजी को सौंप दिया था। जरुरत पड़ने पर विष्णुजी ने इसे देवी को प्रदान कर दिया। इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्र गामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था। भगवान श्री कृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी उपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष, जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों मे रखा जाता था, का भी उपयोग किया गया था। इसके नाम से ही विपक्ष में मौत का भय छा जाता था।

यह कल्पना मात्र ही हो सकती है कि चक्रों को अंगुली के इशारे से चलाया जाता था। क्योंकि आज के वजनों से तुलना करें तो इनका वजन 30 से 35 की. से कम नहीं हो सकता था। हो सकता है कि यह धारणा चक्रधारी को अत्यंत बलशाली निरुपित करने के लिये बनायी गयी हो। पर चक्र को चलाने के लिये अत्यधिक बल की जरुरत होती थी। इनके वजन को साधने और गति देने के लिये दोनों हाथों की जरूरत पड़ती थी। इसे धारण करने वाले को महारथी या चक्रधारी कहा जाता था।

24 टिप्‍पणियां:

बवाल ने कहा…

तो क्या भगवान श्री कृष्ण जी को आप सिंपल रथी समझ रहे हैं ? अरे गोवर्धन पर्वत को छिंगुली पर धारण करने वाले को क्या ३०-३५ किलो वज़न उठाने के लिए दोनों हाथों की ज़रूरत पड़ेगी ? और आप को सुदर्शन चक्र का वज़न किसने बतलाया जी ? आपके ज़माने का हैण्ड ग्रेनेड उठाने के लिए क्या दोनों हाथ लगाने पड़ते हैं ? हमारे कन्हैया लाल जी पर शक न किया कीजिएगा । हाँ नहीं तो।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

सही बात है। तौल की गणना प्रस्तुत रहती तो सुभीता होता।
वैसे 30-35 किलो एक हाथ से उठाना और ऑपरेट करना कोई कठिन कर्म नहीं है। आज महाराणा प्रताप के भाले को दो जन मिल कर उठाते हैं, वे तो एक हाथ से ही चलाते थे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धर्म पर बहस कभी भी उचित नहीं होती। वैसे भी भगवान हमारे-तुम्हारे ना हो कर सबके होते हैं।
वैसे जब महाभारत मे प्रभू ने अपनी शस्त्र ना उठाने की कसम तोड़ रथ का पहिया उठाया था तब भी उसमें दोनों हाथों का उपयोग करते ही दर्शाया गया है उनको।

P.N. Subramanian ने कहा…

एक ऊँगली से संचालित होती थी. प्रभु की माया.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

" यह खुद जितना रहस्यमय है उतना ही इसका निर्माण और संचालन।"
आज भी अणु बम जैसे शस्त्र का निर्माण गोपनीय ही होता है। किसी भी विषैले या घातक अस्त्र का निर्माण गोपनीय ही होगा। ‘एक उंगली’ से वज़नदार शस्त्र चलाने का मतल्ब क्या यह नहीं निकाला जा सकता कि किसी बटन से उसे संचालित किया जाता था...ठीक आज की तरह! हमारे ज्ञान भण्डार को जितना खंगालेंगे उतना ही रह्स्यमय भले ही लगे पर असम्भव नहीं लगेगा। आवश्यकता है हमारी भाषा के प्रतीकात्मा को समझने की।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अरे भाई!
वो द्वापर था, आप कलियुग वाले क्या समझ पायेंगे।

Unknown ने कहा…

sudarshan chakra 30 kilo ka tha
jaan kar gyaan badha...

lekin aapne ye nahin bataaya ki tab us dhaatu ka bhav kya tha jisse vo banaa tha

prabhu lage haath ye bhi bataa deejiye ki shreekrishna ka vazan kitna tha aur unhonne baansuri kitne me khareedi thee ?

mazaa aaya
is post ne toh aanand kara diya
ha ha ha ha ha ha ha ha

विवेक रस्तोगी ने कहा…

कृष्णजी की माया कोई न समझ पाया..

Udan Tashtari ने कहा…

इसीलिये तो..जय कन्हैया लाल की!

Unknown ने कहा…

हम लोग तो नादान बालक हैं अभी… चाहे कितना ही पढ़-लिख लें…

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

राणा प्रताप का जिरह बख्तर ही उनके शरीर तथा बल को बताता है.

eSwami ने कहा…

एकाधिक स्तर पर ये बडा ही आत्मघाती किस्म का लेख है! हा हा!

त्यागी ने कहा…

मित्र बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है. परन्तु कुछ लम्पट टाइप के लोगो की सतही जानकारी के कारण टिप्पिनी आपको उस प्रकार से नहीं मिली. परन्तु उमीद है भविष्ये में भी आप पुराणों और वेदों के महासागर में निकाल कर इस प्रकार की जानकारी देते रहेंगे.
http://parshuram27.blogspot.com/2009/07/blog-post_26.html

Himanshu Pandey ने कहा…

आपने स्पष्ट कर ही दिया है कि धर्म पर बहस उचित नहीं ।
वैसे यह असंभव नहीं । जीवन शैली और युगीन परिस्थितियों के कारण भी इस प्रकार के परिवर्तन संभव हैं कि कल आसानी से उपयोग में लाया जाने वाला शस्त्र आज उठाना भी मुश्किल हो जाय । पुराने शस्त्रों को देखकर ऐसा तो लगता ही नहीं कि वह किसी एक व्यक्ति के द्वारा संचालित किये जाते होंगे ।

प्रविष्टि के लिये आभार ।

Unknown ने कहा…

kripya prabhu ki maya per sack na kiya jaye, jo ek pag se sari srishti ko nap sakte he, prithvi ko samundra me se nikal sakte he unke liye 30-35 kg kya he

Unknown ने कहा…

ye sab to bhagwan hari ji ki hi maya hai unhi ki kripa se sansar bana hai bhagwan vishnu ji jagat palan har hai ye sab prbhu ki maya hai. bat hai ki chakra teen prakar ke hote hai bhagwate vishnu ji ke pas, bhagwan shankar ji ke pass, maa durga ji ke pass alag alag chakra hai ye sab hari ki hi kripa hai

बेनामी ने कहा…

अश्वत्थामा आज भी जिंदा है - कोशिश करें तो आप उस से मिल सकते हैं, देख सकें तो उसकी विशाल काया देखें, फिर आप कभी नहीं कहेंगे कि ३० किलो वज़न उंगली में कैसे उठाते होंगे! आप पूछेंगे अश्वत्थामा कहाँ मिलेगा? जवाब है ... आप खुद पता कीजिये बेहतर रहेगा! कृष्ण-कृष्ण

बेनामी ने कहा…

good hai ...
and mast bhi .....
jaan kari dene ke lie thanks ....
from
nagpal sri 1008

बेनामी ने कहा…

sudarshan ek yantra nahi hai adhbut
kalpna se pare mantra-shakti hai joki shradha-sadhana se prapt kar sakte hai

बेनामी ने कहा…

oom sahastraar hum phatt swaha

Unknown ने कहा…

जब राम थे,,,तब रावन. जब कृष्ण थे,,,,तब कंस. इस युग सुबह राम जैसा व्यवहार करनेवाला व्यक्ती शाम को रावन , कंस जैसा जैसा होता है!

Unknown ने कहा…

Ab apaka sudharstion apakehi hatha me he, apane andar ka sheitan ko mar dalo.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कई बार कुछ लोग बिना पूरा पढ़े ही निष्कर्ष निकाल कर अपनी भड़ास निकालने लगते हैं. जिसने बाल्य-काल में ही छोटी ऊँगली पर गोवर्धन उठा लिया हो, खतरनाक दानवों को धूल चटा दी हो, देवताओं का भी मान-मर्दन कर दिया हो, उस प्रभू की क्षमता पर कोई कैसे प्रश्न खड़ा कर सकता है।

Unknown ने कहा…

कृपया मुझे भी पढ़े व अच्छा लगे तो follow करे मेरा blog है ।। againindian.blogspot.com

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