शनिवार, 27 जून 2009

बेचारे नारद जी ने तो भला ही चाहा था, पर...........

सर्दियों की एक सुबह एक गिद्ध एक पहाड़ की चोटी पर बैठा धूप का आनंद ले रहा था। उसी समय उधर से यमराज का गुजरना हुआ। गिद्ध को वहां बैठा देख यमराज की भृकुटी में बल पड़ गये पर वे बिना कुछ कहे अपने रास्ते चले गये। पर उनकी वक्र दृष्टि से गिद्ध का अंतरमन तक हिल गया। मारे डर के उसके कंपकपी छूटने लगी। तभी उधर कहीं से घूमते-घूमते नारदमुनि भी आ पहुंचे। गिद्ध की दशा देख उन्होंने उससे पूछा, क्यों गिद्धराज क्या बात है ? बहुत घबड़ाये से लग रहे हो। इस पर गिद्ध ने उन्हें पूरी बात बता दी कि इधर से यमराज निकले तो मेरी ओर उन्होंने घूर कर देखा। तभी से मैं परेशान हूं। पता नहीं मैंने कौन सी भूल कर दी है। तनिक सोच कर नारद जी ने गिद्ध से कहा कि एक काम करो। यहां से सौ योजन दूर मंदार नामक पर्वत है। उसमें एक गुफा है। तुम उसी में जा कर छिप जाओ। वहां कोई आता-जाता नहीं है। तब तक मैं यमराज जी से बात करता हूं। इतना कह नारद जी गिद्ध को भेज खुद नारायण-नारायण जपते यमराज के दरबार में जा पहुंचे। यमराज ने उनका स्वागत कर पूछा कि महाराज इधर कैसे आना हुआ ? नारद जी बोले आज सुबह आपने अपनी कोप दृष्टि एक निरीह गिद्ध पर डाली थी जिससे वह बहुत सहमा हुआ था। उसने कौन सी भूल कर दी है यही पूछने आया हूं। यह सुन यमराज बोले, अरे वह! कुछ नहीं। मैंने उससे ना कुछ पूछा ना कहा। मैं तो उसे वहां बैठा देख यह सोच रहा था कि यह यहां क्या कर रहा है। इसकी मौत तो आज सौ योजन दूर मंदार पर्वत की गुफा में लिखी है।

9 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

यही तो है नियति. सुन्दर कथा. आभार

राज भाटिय़ा ने कहा…

बाप रे... नारयण नारयण

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

नारायण!!! नारायण!!!

रामराम

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

गगन जी, कमाल हो गया. हमने भी आज ही इस कथा को एक दूसरे तरीके से अपने ब्लाग "धर्म यात्रा" पर पोस्ट किया है. है न अजब संयोग्!!
http://dharamjagat.blogspot.com

Unknown ने कहा…

ha ha ha ha

Udan Tashtari ने कहा…

सही!!

नारायण!! नारायाण!

विवेक रस्तोगी ने कहा…

ये नारद जी भी न मरवाने के चक्कर में ही रहते हैं :-)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भगवान भला करें।
नारायण!!! नारायण!!!

समयचक्र ने कहा…

सुन्दर कथा,,..

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