मंगलवार, 23 जून 2009

एक बार फिर बेचारे संता की खिंचाई (-:

संता डाक्टर के पास इलाज के लिये गया। कफी जांच पड़ताल के बाद डाक्टर बोला कि मैं फिलहाल आपकी बिमारी का कारण नहीं समझ पा रहा हूं लगता है यह शराब का नतीजा है। संता उठते हुए बोला, कोई बात नहीं डाक्टर साहब मैं बाद में जब आप का नशा उतर जायेगा तब आ जाऊंगा।
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संता रात में सड़क किनारे लैंप-पोस्ट के नीचे कुछ खोज रहा था। तभी उनका पड़ोसी उधर से निकला। वहां संता को देख उसने पूछा, संता साहब क्या ढूंढ रहे हो ?संता, मेरा पांच का सिक्का गिर गया है।पड़ोसी ने पूछा, कहां गिरा था ?संता ने एक तरफ हाथ से इशारा कर कहा, उधर।अरे जब गिरा उधर है तो आप यहां क्यों खोज रहे हैं ?संता, यार उधर अंधेरा है।
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संता के बचपन का एक किस्सा :-
संता और उसके दो दोस्त जंगल में घूमते-घूमते भटक कर रास्ता भूल गये। रात होने वाली हो गयी। डर के मारे तीनों की हालत पतली होती जा रही थी। तभी उनमें से एक ने अपने इष्ट को याद किया। आकाशवानी हुई बोलो क्या चाहते हो? बच्चे ने कहा प्रभू मन घबड़ा रहा है, मुझे घर पहुंचा दीजिये। पलक झपकते ही वह वहां से गायब हो घर पहुंच गया। ऐसा देख दूसरे ने भी अपने आराध्य को याद किया। उसके साथ भी वैसा ही हुआ, वह भी घर पहुंच गया। अब जंगल में संता अकेला। अंधेरा घिर आया था। ड़र के मारे इसके हाथ-पैर फूल रहे थे। पर थोड़ी हिम्मत कर इसने भी अपने इष्ट को याद किया। आकाशवाणी हुई, बोल बालक क्या चाहता है? संता बोला, प्रभू अकेले अंधेरे में बहुत ड़र लग रहा है। मेरे दोनों साथियों को मेरे पास ला दो। अगले ही क्षण दोनों (: (: (:

19 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

मेरे दोनों साथियों को मेरे पास ला दो। अगले ही क्षण दोनों (: (: (

ये काम बावलीबूच ताऊ के अलावा कोई नही कर सकता.:)

रामराम.

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण ने कहा…

बहुत खूब! इत्तफाक से आखिरी चुटकुले का एक रूपांतर आज ही मैंने अपने ब्लोग जयहिंदीमें भी पोस्ट किया। यह रही कड़ी -

परि और सोफ्टवेयर इंजीनियर

राज भाटिय़ा ने कहा…

चलिये ताऊ ने मान ही लिया, कि बो संता नही ताऊ ही था.शर्मा जी बहुत मजेदार.
धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हास-परिहास
अच्छा लगा।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

खिंचाई तो डॉक्‍टर की हुई लगती है
बहुत लंबा हो गया है
अब लंबे करने की दवाई बेचता है

पड़ोसी ने टॉर्च लाकर क्‍यों नहीं दी
जरूर उसके जाने के बाद लाया होगा

बचपन का नहीं
पचपन का लगता है
यह किस्‍सा
पर बिना किस के क्‍यों

P.N. Subramanian ने कहा…

आप बड़े वो हैं!

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा, मजेदार!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

मजेदार!!

बेनामी ने कहा…

बताईये कुछ दिनों पहले कोई कह रहा था आपके ब्लॉग का नाम अखबार में आया है .आप यहाँ चुटकुले सुना रहे है .ये तो किसी दो रुपये के पंजाब केसरी में पढने को मिल जायेगे

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

अनोनिमस जी
ऐसे दो दो करके
एक दिन के दो सौ हो जाएंगे
वैसे पंजाब केसरी तीन रुपये का आता है
दो रुपये का पंजाब केसरी नहीं
पंजाब गीदड़ होगा
वो नहीं चाहिए
उसमें चुटकुले नहीं होंगे
और जिसमें चुटकुले होंगे
उसमें अलग सा (से)
टिप्‍पणियां नहीं होंगी।

अब तो अपना नाम बतला दें
बेनामी जी
आपके समूह से ब्‍लॉगजगत में
तूफान मचा रखा है
ब्‍लॉगवासी नहीं है
पर ब्‍लॉगों पर कब्‍जा जमा रखा है।

बेनामी ने कहा…

लो जी
आपको चुटकुले पढने का शौंक है या सस्ती कविताएं लिखने का ?पहले क्लियर कर लो .

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

जीवन में हास्य रस भी बहुत जरूरी है. चुटकुले बढिया लगे.........

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

एनोनिमस जी
हमारे शौक की मत पूछिए
हमें तो आपका चेहरा पहचानने
का भी शौक है
पर आपके शोक की कीमत पर बिल्‍कुल नहीं।

आप बेनामी ही रहिए
बिना नाम के ही ब्‍लॉगों पर बहिए
हमें तो आपकी टिप्‍पणियों से भी
सुकून मिलता है
क्‍योंकि आपका पहिया
हिन्‍दी में चलता है।

हिन्‍दी हित के लिए आपका
बेनामी होना
हमारी सुनामी होना
एक ही दर्जे में आता है।

आपके पास ऐसा कौन सा मीटर है
जिससे कविताएं सस्‍ती हैं
या महंगी है
पता लगता है
आपने तो अपनी तरह
उसे भी बेनामी बना रखा है।

आपको इस नो‍ट चैकिंग पोर्टेबल पैन
की दरकार है
फिर आप सबके नोटों की चैकिंग
किया करना
गुप्‍त रहकर टिप्‍पणियां करते हैं
फिर परोपकार किया करना
http://jhhakajhhaktimes.blogspot.com/2009/06/blog-post_23.html
नोट असली है या नोट असली है
अपनी असलियत की तरह
इसका भी पता कर लिया करना
या पहचान छिपाये रखना
पर पता बतला देना
पैन भिजवायेंगे आपके पते पर
कहो तो खुद देने चले आएं।

बेनामी ने कहा…

हीन्दी ब्लाग जगत ?
माने लोंडो लपाडो की दुनिया,
चाटूखारो कि दुनीया

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अविनाश जी,
आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। साथ खड़े रहने के लिये।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

क्‍या आप जानते हैं कि
बेनामी जी 85 साल के अनुभवी परिपक्‍व बुजुर्ग हैं
हम लौंडे लपाडे हैं
फिर भी इनकी हिन्‍दी में वर्तनी अशुद्ध नहीं है
वो तो इन्‍होंने खिजाने के लिए लिखी है
85 साल के हो गए पर किसी की चाटुकारी नहीं की
अब तक बेनामी हैं
और अगले 150 साल तक बेनामी ही रहेंगे

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अजनबी मित्र,
हो सकता है कि हम लोग आपके स्तर के लायक ना हों। शायद इसीलिये आप हम सबसे घुलना-मिलना नहीं चाहते। इसीलिये सदा अपनी पहचान छिपाये रखते हैं। पर फिर क्यूं इधर आ कर बेकार में अपना जायका खराब करते हैं ? अरे भाई ऐसी जगह जाना ही क्यूं जो अपने मन-मुताबिक ना हो बेकार में रक्त-चाप बढवा कर अपनी सेहत से खिलवाड़ ना करें।
वैसे इस नकाब को उतार कर आईये, वादा है सभी आपको अपने बीच पा खुश ही होंगे।
हां भाई एक बात और पूछनी थी, चुटकुले आपकी नज़र में कोई अहमियत क्यों नहीं रखते ?

Ambrish Garg ने कहा…

see same joke here
http://buzz.gojini.com/sms

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