गुरुवार, 11 जून 2009

सहवाग और धोनी को लेकर मीडिया ने भ्रम फैलाया

आज कल मीड़िया में सहवाग और धोनी को लेकर तनातनी चल रही है। एक गुट दिल्ली के जाट के पक्ष में खड़ा है तो दूसरा झारखंड़ी ठाकुर के। खेल के गलियारे को भी जात-पात के अखाड़े में बदल कर रख दिया है मतलब परस्तों ने। पहला गुट सहवाग पर अवसरवादी होने का आरोप लगा बता रहा है कि उसने अपने कंधे की चोट, जो उसे पिछले आईपीएल में डेक्कन के खिलाफ खेलते हुए लगी थी, जान-बूझ कर छिपाई, क्योंकि उसके (सहवाग के) ख्याल में भारत के 20-20 के विश्व कप में जीतने की अच्छी संभावना है और उसमें मिलने वाली भारी-भरकम रकम का हिस्सा वह खोना नहीं चाहता। इसीलिये सिर्फ एक दो मैचों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के बाद वह अपनी चोट का हवाला दे बाहर बैठा रहना चाहता था। इसीलिये वह अपने परिवार को भी साथ ले आया था जिससे खाली समय में तफरीह की जा सके।
दूसरा खेमा धोनी को निशाना बना सहवाग का पक्ष ले लिखे जा रहा है। उसके अनुसार धोनी की निरंकुशता जग जाहिर है। वह अपने ऊपर किसी भी सीनियर को सहन नहीं कर पा रहा तथा एक-एक कर उसने सब से पार पा लिया है। अकेला बचा सहवाग (तेंदुलकर भी तकरीबन टेस्ट में ही सिमट कर रह गया है)जो भारत का अकेला त्रिशतकवीर है, अपने खेल के बूते पर धोनी के लिये खतरा बना हुआ है। उसका बल्ला जब बोलता है तो धोनी हाशीए पर चला जाता है और अपनी यह हेठी इस ठाकुर को पच नहीं पाती है। मीडिया के इस पक्ष के अनुसार दोनों के बीच कुछ भी ठीक नहीं है। इस बात को नकारने के लिये धोनी को मजबूरन प्रेस को बुलाना पड़ा पर वहां भी वह अपने अहं को छिपा नहीं पाया और आधी-अधूरी कांफ्रेंस को बीच में छोड़ उठ कर चला गया।
अब आप ही बतायें कि आप किसका कहा सच मानेंगें। इस बिकाऊ युग में।

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गगन शर्मा जी।
ये मीडिया वाले तिल का ताड बनाने में
बड़े माहिर हैं।

रंजन ने कहा…

न जी न ये सच न वो सच..
सच है क्या
शायद
सच को भी नहीं पता..
क्योंकि
वो भी अभी टीवी देख आया है!!

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत सही . लग तो मुझे भी यही रहा है.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

खासकर मैचो के समय उलजलूल खबरे भी मीडिया देता है कभी कभी लगता है कि ये सट्टेबाजों को सपोर्ट तो नहीं कर रहे है ?

राज भाटिय़ा ने कहा…

हमारे यहां मिडिया वाले बहुत बकवास करते है, ओर लोगो को खाम्खां मै हेरान करते है, हमे क्या जाये भेंस जोहड मै, मुझे इस खेल या इस के खिलाडियो से ज्यादा अपने देश के उन नोजवानो की फ़िक्र होती है जो हमारे लिये अपनी जान पर खेलते है, भाड मै जाये किर्केट
लेकिन शर्मा जी आप ने अपने लेख मै जान डाल दी

Nitish Raj ने कहा…

जितनों ने भी कमेंट किया है क्या वो कभी ड्रेसिंग रूम में जाकर बैठे हैं। टीम इंडिया के किसी भी खिलाड़ी के साथ खाना खाया है या हाथ मिलाया है या फोन पर बात की है। गर नहीं तो बिन जाने पहचाने आरोप मत लगाइए। ना तो आप धोनी को जानते हैं और ना ही आप वीरू को। बेहतर ये है कि आप अपनी राय रखें ना की कमेंट दें।

Nitish Raj ने कहा…

जितनों ने भी कमेंट किया है क्या वो कभी ड्रेसिंग रूम में जाकर बैठे हैं। टीम इंडिया के किसी भी खिलाड़ी के साथ खाना खाया है या हाथ मिलाया है या फोन पर बात की है। गर नहीं तो बिन जाने पहचाने आरोप मत लगाइए। ना तो आप धोनी को जानते हैं और ना ही आप वीरू को। बेहतर ये है कि आप अपनी राय रखें ना की निर्णय दें।

Gagan Sharma ने कहा…

राज जी,
जाहिर है आप मीडिया से जुड़े हैं सो आपको खली होगी ये बातें। पर अच्छा होता आप सच्चाई बता कर सबकी उत्सुकता शांत करते। क्योंकी हो सकता है आपकी खिलाड़ियों से रोज फोन पर बातें होती हों, आते-जाते आप हाथ मिलाकर उन्हें शुभकामनायें देते हों, गाहे-बगाहे खाना वगैरह भी खाने का मौका पा जाते हों (पर ड्रेसिंग रूम में तो आप भी नहीं जा पाते होंगें तो बाकीयों का क्या कहना)। और वैसे भी अंग्रेजी के कमेंट का एक अर्थ हिंदी में राय भी है तो क्यों ना सब बातें बिना तल्खी के की जायें।

Nitish Raj ने कहा…

गगन शर्मा जी,
मेरा उद्धेश्य किसी का दिल दुखाना नहीं था। जैसे आपने कहा यदि असलियत पता होती तो आप खुद क्यों नहीं बता देते। तो इसका जवाब ये है कि आप को आज ही पता चल गया होगा इसका जवाब। उपकप्तान वाले प्रकरण पर क्या हुआ। जहां तक सवाल रहा कि ड्रेसिंग रूम का तो बहुत से पत्रकार ऐसे रहे हैं जो कि टीम के साथ खेल भी चुके हैं।
मेरी किसी बात को अन्यथा ना लें। यदि आप को बात गलत लगी हो या चुभ गई हो तो माफी चाहूंगा। मेरा उद्देश्य ये नहीं था।

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