मच्छर तथा मलेरिया पर वर्षों से इतना लिखा पढ़ा गया है कि एक अच्छा खासा महाकाव्य बन सकता है। 1953 में इस रोग की रोकथाम के उपायों की शुरुआत की गयी, जिसे 1958 में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का रूप दे दिया गया। पर नतीजा शून्य बटे सन्नाटा ही रहा। सरकारें थकती नहीं नियंत्रण की बात करने में और उधर मच्छर भी डटे हैं रोगियों की संख्या बढ़ाने मेँ। विडम्बना है कि जिस खून को बनाने-बचाने में इंसान चौबिसों घंटे लगा रहता है, उसी खून को मच्छर अपने भार से तीन गुना अधिक एक ही बार में चूस कर पेट भर लेता है। जबकी उसकी उम्र होती है मात्र तीस दिन की।आजकल टीवी के नब्बे प्रतिशत धारावाहिकों में महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन नज़र आती हैं। पहले लगता था कि यह सब आज की दौड़ में बने रहने के हथकंडे हैं। पर ऐसा नहीं है प्रकृति ने ही कुछ ऐसा विधान बनाया हुआ है कि "नारी ना सोहे नारी के रूपा"।मच्छर लाल रंग या रोशनी की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं तथा महिलाएं इन्हें ज्यादा लुभाती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार महिलाओं में एक खास हारमोन होता है, जिससे उनके पसीने में एक विशेष गंध पैदा होती है। वही मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करती है। और ये तो जग जाहिर है कि सिर्फ़ मादा मच्छर ही रक्त चूसती है। ये आश्चर्य की बात है कि यह नन्हा सा कीड़ा विज्ञान का भी जानकार होता है, तभी तो अपने डंक के साथ एक ऐसा रासायन भी शरीरों में छोड़ता है जिससे रक्त अपने जमने की विशेषता कुछ समय के लिए खो बैठता है। उतनी देर में यह खून चूस, किटाणु छोड़ हवा हो जाता है। जानकर विश्वास नहीं होता कि आज तक जितने लोग युद्धों में मरे, उससे ज्यादा लोगों को इस कीड़े ने मौत के मुंह में पहुंचा दिया है। जितना पैसा दुनिया भर की सरकारें इस से छुटकारा पाने पर खर्च करती हैं वह यदि बच जाए यो दुनिया में कोई भूखा नंगा नहीं रह जाए। इससे बचने का एक ही उपाय है कि बिना किसी का मुंह जोहे, अपनी सुरक्षा आप की जाए। इन सुरक्षा विधियों पर इतना लिखा, पढ़ा, छापा गया है कि उनका दोहराव फिजूल ही होगा।
बस इतना ही समझ लीजिये की ये महाशय 'देखन में छोटे हैं पर घाव करें घंभीर। सो बचाव में ही बचाव है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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13 टिप्पणियां:
इनका गुण, धर्म,स्वभाव तो बिल्कुल नेताओं जैसा ही है!!
"की।आजकल टीवी के नब्बे प्रतिशत धारावाहिकों में महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन नज़र आती हैं।"
श्रीमती मच्छर ने यह सिद्ध कर दिया है।
बिल्कुल सही दिशा मे और पृकृति के नियमानुसार ही कार्य करती हैं श्रिमती मच्छरानी जी.
आपकी बात ने सिद्ध कर दिया कि ओरत ही ओरत की परम दुश्मन होती है. पर सोचिये अगर ये इस बात को समझ गई और दुश्मनी छोड कर इनकी दोस्ती होगई तो आपका हमारा क्या होगा?:)
बस चुपचाप मजे करिये.
रामराम.च
ताऊ की बात सटीक है.
पंडित जी
असल में मच्छर लाल को महिलाओं का साफ़ सुथरा घरेलू खून और उनके माथे की लाल बिंदियाँ खूब पुसाती है इसीलिए वे महिलाओं की और पहले दौड़ लगाते है .
ab usko bhee jeene ka hak hai...prakriti ka apna balance hai..apne liye unka samool naash to kar nahi sakte...bachaav karna hi thik hai....mujhe vaise 3 saal ho gae apne kamre me machhardaani lagaaye...sochta hoon vichaar karoon
www.pyasasajal.blogspot.com
Aak machchhar aak pariwar ki jindgi barbad kar deta hai.
Aak machchhar aak pariwar ki jindgi barbad kar deta hai.
ताऊ की बात भी सटीक है.
रोचकता लिए हुए
बहुत ही दिलचस्प पोस्ट,
पढ़कर मज़ा आ गया,
क्योंकि आपने कई बातें
बिल्कुल सही लिखी हैं!
---------------------
निष्कर्ष :
पत्नी के साथ ही सोना चाहिए
और अगर मच्छरदानी लगी हो,
तब तो
हमेशा पत्नी के साथ ही सोना चाहिए!
-----------------------------
यह भी
सही कहा है आपने -
देखन में छोटे हैं,
लेकिन घाव करें गंभीर!
नाना पाटेकर के
हिसाब से तो यह घाव
ऐसा भी हो सकता है -
एक साला मच्छर,
आदमी को ... ... बना देता है!
महिलाएँ इन्हें ज़्यादा लुभाती हैं,
पर यह भी सही है कि
मादा मच्छर
महिला नहीं होती है!
यह भी सही है -
आदमी कितने भी
बड़े-बड़े दावे कर ले,
लेकिन मच्छर से जीतना
उसके बस की बात नहीं!
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