शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

लिंकन ने गीता तो नहीं पढी होगी, पर

अब्राहम लिंकन ने गीता तो नहीं पढी होगी पर उनका जीवन पूरी तरह एक कर्म-योगी का ही रहा। वर्षों-वर्ष असफलताओं के थपेड़े खाने के बावजूद वह इंसान अपने कर्म-पथ से नहीं हटा, अंत में तकदीर को ही झुकना पड़ा उसके सामने।
अब्राहम लिंकन 28-30 सालों तक लगातार असफल होते रहे, जिस काम में हाथ ड़ाला वहीं असफलता हाथ आई। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लोगों के लिए मिसाल पेश की और असफलता को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। लगे रहे अपने कर्म को पूरा करने में, जिसका फल भी मिला, दुनिया के सर्वोच्च पद के रूप में। उनकी असफलताओं पर नज़र डालें तो हैरानी होती है कि कैसे उन्होंने तनाव को अपने पर हावी नहीं होने दिया होगा। 20-22 साल की आयु में घर की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए उन्होंने व्यापार करने की सोची, पर कुछ ही समय में घाटे के कारण सब कुछ बंद करना पड़ा। कुछ दिन इधर-उधर हाथ-पैर मारने के बाद फिर एक बार अपना कारोबार शुरु किया पर फिर असफलता हाथ आयी। 26 साल की उम्र में जिसे चाहते थे और विवाह करने जा रहे थे, उसी लड़की की मौत हो गयी। इससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया, पर फिर उन्होंने अपने आप को संभाला और स्पीकर के पद के लिए चुनाव लड़ा पर वहां भी हार का सामना करना पड़ा। 31 साल की उम्र में फिर चुनाव में हार ने पीछा नहीं छोड़ा। 34 साल में कांग्रेस से चुनाव जीतने पर खुशी की एक झलक मिली पर वह भी अगले चुनाव में हार की गमी में बदल गयी। 46 वर्षीय लिंकन ने हार नहीं मानी पर हार भी कहां उनका पीछा छोड़ रही थी फिर सिनेट के चुनाव में पराजय ने अपनी माला उनके गले में डाल दी। अगले साल उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए खड़े हुए पर हार का भूत पीछे लगा ही रहा। अगले दो सालों में फिर सिनेट पद की जोर आजमाईश में सफलता दूर खड़ी मुस्काती रही। पर कब तक भगवान परीक्षा लेता रहता, कब तक असफलता मुंह चिढाती रहती, कब तक जीत आंख-मिचौनी खेलती। दृढ प्रतिज्ञ लिंकन के भाग्य ने पलटा खाया और 51 वर्ष की उम्र में उन्हें राष्ट्रपति के पद के लिए चुन लिया गया। ऐसा नहीं था कि वह वहां चैन की सांस ले पाते हों वहां भी लोग उनकी बुराईयां करते थे। वहां भी उनकी आलोचना होती थी। पर लिंकन ने तनाव-मुक्त रहना सीख लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई भी व्यक्ति इतना अच्छा नहीं होता कि वह राष्ट्रपति बने, परंतु किसी ना किसी को तो राष्ट्रपति बनना ही होता है। तो यह तो लिंकन थे जो इतनी असफलताओं का भार उठा सके, पर क्या हर इंसान इतना मजबूत बन सकता है? शायद हां। इसी 'हां' को समझाने के लिए भगवान ने इस धरा पर गीता का संदेश दिया था। क्योंकि वे जानते थे कि इस 'हां' से आम-जन को परिचित करवाने के लिए, उसकी क्षमता को सामने लाने के लिए उसे मार्गदर्शन की जरूरत पड़ेगी।

7 टिप्‍पणियां:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही बढि्या तरीके से उदाहरण सहित आपने कर्म के महत्व को समझाने का प्रयास किया है....अगर मनुष्य एक लक्ष्य होकर कर्म पथ पर बढ चले तो एक न एक दिन सफलता मिलनी निश्चित है.

Gyan Darpan ने कहा…

कर्म पथ पर चलने का बहुत अच्छा द्रष्टान्त !

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत प्रेरणास्पद पोस्ट.

रामराम.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

प्रेरणादायक

aarti ने कहा…

thanks for this inspiring post.

Anil Kumar ने कहा…

उम्दा उदाहरण! हम गीतापाठ करके भी पिछडे ही रह गये - कहाँ गलती रही?

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