रविवार, 12 अप्रैल 2009

हिड़िंबा, जो राक्षसी से देवी बन पूजी गयी।

जूए में हार जाने के बाद पांड़व अज्ञातवास भुगत रहे थे। जंगलों में भटकते हुए किसी तरह समय कट रहा था। ऐसे ही एक दिन जब मां कुंती समेत सब थके हारे एक वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे, एक राक्षस, जिसका नाम हिड़िंब था, की नज़र इन पर पड़ी। मानव मांस भक्षण का अवसर देख उसने अपनी बहन हिड़िंबा को इन्हें मार कर लाने का आदेश दिया। हिड़िंबा पांडवों तक आ तो गयी पर भीम का अप्रतिम सौंदर्य और पुरुषोचित रूप देख उस पर मुग्ध हो कर रह गयी। एक अपरचित नारी को सामने देख भीम ने उसका परिचय पूछा तो उसने अपनी कामना के साथ-साथ सब सच-सच बता दिया।
इतने में बहन को गये काफी वक्त हुआ देख वहां हिड़िंब भी आ धमका। बहन को मानवों से बात करता देख वह आग-बबूला हो उठा और उसने इन लोगों पर हमला कर दिया। भीषण युद्ध के बाद हिड़िंब मारा गया।
कुंती हिड़िंबा के व्यवहार से प्रभावित हुई थी। उसने हिड़िंबा का विवाह सशर्त करना स्वीकार कर लिया। शर्तें तीन थीं। पहली हिड़िंबा राक्षसी आचरण का पूरी तरह त्याग कर देगी। दूसरी, भीम दिन भर उसके पास रहेगा पर रात को हर हालत में अपने भाईयों के पास लौट आयेगा। तीसरी और सबसे अहम कि पुत्र प्राप्ति के बाद हिड़िंबा को पति से सदा के लिए अलग होना पड़ेगा। हिडिंबा ने खुशी-खुशी सारी बातें मान लीं। समयानुसार उसको पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसका नाम रखा गया घटोत्कच। जिसने बाद में महाभारत युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुत्र प्राप्ति के बाद हिड़िंबा ने तपस्विनी की तरह रहते हुए अपना सारा समय अपने पुत्र के भविष्य को संवारने में लगा दिया। अपने सात्विक जीवन और तपोबल से वह जन आस्था का केन्द्र बन एक देवी के रूप में अधिष्ठित हो गयी।
इसी हिड़िंबा देवी का मंदिर हिमाचल के कुल्लू जिले के मनाली नामक स्थान पर स्थित है। कुल्लू शहर से मनाली की दूरी 40की.मी. है। वहां से सड़क मार्ग से 2की.मी. चलने पर आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। वैसे सीढियों द्वारा भी जाया जा सकता है पर वह काफी श्रमसाध्य सिद्ध होता है। घने देवदार के वृक्षों से घिरे इस स्थान पर पहुंचते ही मन को एक अलौकिक शांति का एहसास होता है। पहले यहां कफी घना जंगल था पर अब इसे सुंदर उपवन का रूप दे दिया गया है। जिसका सारा श्रेय पुरातत्व विभाग को जाता है। यह मंदिर लकड़ी की बनी एक अद्वितीय रचना है। कलाकार ने इस पर अद्भुत कारीगरी कर विलक्षण आकृतियां उकेरी हैं। यहां के निवासियों का अटूट विश्वास है कि मां हिड़िंबा उनकी हर तरह की आपदा, विपदा, अला-बला से रक्षा करती हैं। इनकी पूजा पारंपरिक ढंग से धूमधाम से की जाती है।
यह एक उदाहरण है, कि यदि कोई दृढ प्रतिज्ञ हो तो वह क्या नहीं कर सकता। हिड़िंबा ने राक्षसकुल में जन्म लिया, भीम के संसर्ग से मानवी बनी और फिर अपने तपोबल के कारण देवी होने का गौरव प्राप्त किया।

10 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

BADHAAYEE IS ROCHAK JAANKAARI KE LIYE MAIN IS STHAAN PE GAYA HUN MANDIR SE NICHE UTARATE HI EK CHHOTA SA KASBAA HAI JAHAN CHHOTA SA EK BAAZAAR HAI...DHERO BADHAAYEE AAPKO


ARSH

समयचक्र ने कहा…

बड़ी रोचक जानकारी देने के लिए धन्यवाद.

अक्षत विचार ने कहा…

सच में दोनों चीजें मनुष्य के भीतर होती हैं अब हम किसे वरीयता देते हैं?

P.N. Subramanian ने कहा…

प्रेरणादायी आलेख. आभार.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अरे आप कुल्लू मनाली कहाँ पहुँच गए। हिडिम्बा तो दर्रा वन्यजीव अभायरण्य की थी। वहाँ भीम चौरा (चबूतरा) बना है। जो ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 12 के किनारे है।

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

बहुत अच्‍छी जानकारी के लिए आभार आगे का इंतजार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिनेश जी,
हो सकता है कि वहां भी किसी भक्त ने मंदिर बना दिया हो। पर एतिहासिक और मुख्य मंदिर मनाली में ही है। उसी के पास, उपवन के बाहर एक वृक्ष के नीचे घटोत्कच की भी पींडी रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। कभी समय निकाल कर जरूर जायें।

L.Goswami ने कहा…

मैंने यह कथा कई बार पढ़ी है हर बार यही सोंचा है मैंने क्यों किसी के साथ इतना पक्षपात होता है?

रंजू भाटिया ने कहा…

रोचक जानकारी धन्यवाद

Gyan Darpan ने कहा…

रोचक जानकारी
देवत्व और राक्षसपन हर व्यक्ति के अन्दर होता है जरुरत है सिर्फ राक्षस प्रवृति वाले व्यक्ति में देवत्व जगाने की |

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