सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

लोहार्गल, जहाँ पांडवों के हथियार गले थे.

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था, पर पांडव स्वजनों की हत्या के पाप से व्यथित थे। श्री कृष्ण के निर्देश पर वह सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन करते भटक रहे थे। श्री कृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांण्ड़व लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्य कुंड़ में स्नान किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधी से विभूषित किया। फिर शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।
राजस्थान के शेखावटी इलाके के झुंझुनूं जिले से 70 कि. मी. दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है लोहार्गल। जिसका अर्थ होता है जहां लोहा गल जाए। पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। पहले यहां सिर्फ साधू-सन्यासी ही रहा करते थे, पर अब गृहस्थ लोग भी रहने लगे हैं। यहां एक बहुत विशाल बावड़ी है जो महात्मा चेतन दास जी ने बनवाई थी, यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। साथ के पहाड़ पर प्राचीन सूर्यमंदिर बना हुआ है। साथ ही वनखंड़ी जी का मंदिर है। कुंड़ के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा पांड़व गुफा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढियां चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किये जा सकते हैं। यहां समय-समय पर मेले लगते रहते हैं। हज़ारों नर-नारी यहां आ कुण्ड़ में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
लोहार्गल एक प्राचीन, धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल है। लोगों की इसके प्रति अटूट आस्था भी है। भक्तों का यहां आना-जाना लगा रहता है फिर भी इस क्षेत्र की हालत सोचनीय है। सरकार की ओर से पूर्णतया उपेक्षित इस जगह पर प्राथमिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। चारों ओर गंदगी का आलम है। पशु-मवेशी खुले आम घूमते रहते हैं। सड़कों की हालत दयनीय है। नियमित बस सेवा भी उपलब्ध नहीं है। रहने खाने का भी कोई माकूल इंतजाम नहीं है। यदि इस ओर थोड़ा सा भी ध्यान पर्यटन विभाग दे तो यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना शुरु हो सकता है।

12 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बचपन मे हम भी गये हैं यहां . शायद इसी को वहां लोहागर्जी ( गांव की भाषा में ) बोलते हैं.

रामराम.

"अर्श" ने कहा…

ab pata chal gaya .... sachhi upyogi jaankari...........




arsh

Udan Tashtari ने कहा…

जानकारी के लिए आभार.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

एक अलग सी जानकारी .धन्यबाद

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

जानकारी के लिए आभार.।

Gyan Darpan ने कहा…

इस उपेक्षित जगह की जानकारी देने के लिए आभार | स्कूल के दिनों में एक बार यहाँ गए थे अब भी गांव जाते समय हर बार उदयपुरवाटी होकर ही जाते है लेकिन यहाँ नही होता | उदयपुरवाटी के पास पहाडों में एक और सुरम्य जगह है शाकम्बरी देवी का मन्दिर |

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छी जानकारी दी है....महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी जनकारी दी आप ने, अगर सरकार इन की देख बाह्ल करे तो राज्या को इन से कितनी आमदनी हो, ओर यह स्थान भी अपने रुप मौ सदियो रहे, ओर अगर कोई स्थानिया व्यक्ति इस की देख भाल शुरु कर दे तो यह नेता अपने गुंडे भेज कर अपना हिस्सा मांगने जरुर पहुच जायेगे.
धन्यवाद

Arvind Gaurav ने कहा…

sahi kaha aapne aaj bahut aisi itihaasik dharohar hai jispar pryatan vibhag ka dyan nahi ja rahaa,,,,yah hamari sanskrita aur sabyata ke liye chinta ka vishay hai.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही अच्छी जानकारी प्रदान की आपने......वैसे बहुत पहले इस स्थान के बारे में कहीं पढा अवश्य था.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Sainkadon aisi mulywan dharoharen hain jo upekshit padi hain.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राज जी
उगाही का जरिया तो कोई ना कोई खोज ही लेता है ! अब यहां सुनसान सी जगह में बैरियर लगा इंट्री फीस ली जाती है

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