नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के "स्कन्दमाता" स्वरुप की आराधना की जाती है। स्कन्द, भगवान कार्तिकेय का ही एक नाम है। इन्हीं की माता होने के कारण मां दुर्गा को स्कन्दमाता के नाम से भी जाना जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। अपनी दाहिनी भुजा में इन्होंने भगवान् कार्तिक को बाल रुप में उठा रखा है, दुसरी भुजा अभय मुद्रा में उठी हुई है तथा बाकि दोनों हाथों में कमल-पुष्प है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। सिंह भी इनका वाहन है।
इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं तथा उसे परम शांति और सुख की प्राप्ति होती है। स्कन्दमाता की आराधना से बालरुप स्कन्द भगवान की भी उपासना अपने आप हो जाती है। नवरात्रि की पंचमी को स्कन्दमाता की आराधना करते समय साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक भी अलौकिक तेज व कांति से संपन्न हो जाता है।
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सिंहासनम्ता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
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इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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4 टिप्पणियां:
badhiya prastutikaran . dhanyawad.shubhakaman navaraatr parv ki.
शर्मा जी आप का दिल से आभार
बहुत बहुत आभार इस उम्दा कार्य के लिए.
आपलोगों के स्नेह से हौसला बना रहता है। हार्दिक धन्यवाद।
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