शनिवार, 27 सितंबर 2008

पंछी बनुं उड़ता फिरूं खुले गगन में

हमारे वेद-पुराणों की एक-एक बात अब सच हो सामने आती जा रहीं है। उसमें नयी कडी है, इंसान का पंछी बन कर उड़ना। खुले आकाश में पंछियों की तरह उड़ने के सपने को साकार करने की कयी कोशिशें की गयीं थीं पर सफलता हासिल ना हो पाई थी। पर स्विट्जरलैंड के 49 वर्षिय इव्स रासी ने पिछले शुक्रवार को इस सपने को हकीकत में बदल दिया। ब्रिटेन और फ्रांस के बीच फैले इंगलिश चैनल को इन्होंने करीब 150किमी की रफ़्तार से 12 मिनट में पार कर, मानव जाति के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय लिख दिया। यह दूरी करीब 32किमी की है। इस कारनामे को इन्होंने धरती से लगभग 10000फ़िट उपर उड़ते हुए अंजाम दिया। पर यह सब इतना आसान नहीं था। अपने गैराज में मशीन के पंखों के ड़िजाइन पर तथा उसे मुर्तरूप देने में इव्स को अपने जीवन के 15 बेशकीमती साल खपाने पड़े। पर अपनी धुन के पक्के इस इंसान ने कभी हार नहीं मानी और असंभव को संभव कर दिखाया।
हमारे लिए यह आविष्कार इस लिए सुखद है क्योंकी रामायण आदि ग्रंथों में, हनुमानजी, जटायू या संपाती आदि पात्रों के आकाशगमन को कोरी कल्पना मानने वालों के मुंह पर ताला लग जाएगा।

1 टिप्पणी:

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप ने सही कहा साईंस पहले भी थी ओर भारत ने इस मे बहुत ज्यादा तरक्की की थी, जिन बातो का चरचा रामायण ओर महाभारत मे होता हे,लेकिन हमे तो अंग्रेजी के बिना कुछ सुझाता ही नही देश की तरक्की भी...
धन्यवाद, एक अच्छे ओर सुन्दर विचारो वाली पोस्ट के लिये

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