मंगलवार, 29 जुलाई 2008

यक्क दम सच्ची कहानी, कसम लपुझंने की

अनुराधाजी की लघु तथा समीरजी की अणु कथाओं को समर्पित ---- पूरी कायनात बनाने के बाद सृष्टीकर्ता ने अपनी सर्वोत्तम रचना पुरुष को पृथ्वी पर भेजा। सारे प्राकृतिक सौंदर्यों के बावजूद वह कुछ ही दिनों मे ऊब महसूस करने लगा सो उसने प्रभू के पास जा {उन दिनों ऊपर आना-जाना बहुत आसान था} अपनी उलझन बताई प्रभू ने तुरंत नारी का निर्माण कर उसे पुरुष के साथ कर दिया। कुछ दिन तो मौज-मस्ती मे निकल गये पर फिर एक साथ रहना मुश्किल होता देख पुरुषवा, उन दिनों नाम कहां होते थे, फिर अपने रचयिता के पास पहुंचा और नारी को वापस बुला लेने की गुहार करने लगा, दयालु प्रभू ने अपने बच्चे की बात मान नारी को वापस बुलवा लिया। पर कहते हैं ना कि किसी के जाने या मरने के बाद ही उसकी कीमत पता चलती है सो पुरुष भी बेहाल रहने लगा ना दिन कटते थे ना रात तो फिर एक बार वह पहुंचा अपने पिता के पास और अपनी संगिनी को वापस ले जाने की इच्छा जताई भगवान ने उसकी बात मान दोनो को विदा किया। पर वह नर और नारी ही क्या जो आपस मे शांति के साथ रह लें। रोज की किच-किच से तंग आ पुरुष ने फिर एक बार कर्ता के पास जा नारी को वापस बुलवा लेने की बात कही, पर इस बार तो गजब ही हो गया, प्रभू खुद उठ कर उसके पास आये और हाथ जोड कर बोले भैइये उसे तुम ही संभालो, तुम तो मेरे पास दौडे चले आते हो अरे मैं किसके पास जाउं। पुरुषवा बेचारा हताश निराश लौट आया, और उसी दिन से ऊपर का रास्ता भी वन-वे हो गया।

6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

....bahut badiya... agle post ke intjar me.....

बेनामी ने कहा…

sundar rachana....

Prabhakar Pandey ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना। लिखें । साधुवाद।

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! बहुत बढिया.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

नारी न हुई, मुई बिलागिंग हो गई।

बालकिशन ने कहा…

हा हा हा

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